अन्ना हजारे सही या गलत?

आज अन्ना हजारे से विरोध रखने वाले सबसे ज्यादा अगर किसी बात पर बहस कर रहे है तो  उनके  अनशन के औचित्य पर और उसके सही या गलत होने पर. राहुल गांधी (तथा कथित युवावों के नेता, भारत के भविष्य? कांग्रेसी  चाटुकारों के जबान में) ने तो अन्ना के अनशन को लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा करार दे दिया. शायद राहुल गाँधी की समझ लोकतंत्र के बारे में यही है? क्या लोकतंत्र जनांदोलनो से खतरे में पद सकता है? लोक तंत्र किसका है और किसके लिए है? क्या चंद चुने हुए लोग समूची जनता के  भाग्यविधाता हो सकते है? अपनी बात कलो शांति पूर्ण तरीके से व्यक्त करने को क्या राष्ट्र विरोधी और लोक तंत्र विरोधी कहेंगे? शायद राहुल की सोंच यही हो. हो भी क्यों न जिसने गरीबी के दर्शन न किये हो, इतना बड़ा राष्ट्र विरासत(?) में मिल गया हो, अरबों रूपये के ट्रस्ट हो, उसकी सोंच क्या होगी?. राहुल को अपनी सर्कार की डकैती नहीं दिखती, उसपर उनके कोई विचार नहीं है, किसी घोटाले से उनका मन आहत नहीं होता, किसानो के आत्महत्या करने, महगाई के बेतहासा बदने, और गरीबों के निरंतर गरीब होने पर उनके पास कोई विचार नहीं है, मनमोहन जैसे निकम्मे व्यक्ति की वोट में चल रही इस साझा लूट पर अगर एक मध्यम वर्गीय व्यक्ति ने आवाज उठाई तो कागरेसी   सरदार का खून खुल उठा. कांग्रेसी निकम्मों को जब तक हम चुनते रहेगें हमारी और राष्ट्र दोनों की दुर्गती होती रहेगी. क्योंकी भ्रष्टआचार में सबसे बड़ा हिस्सा इन्ही चोरो का है.

(शब्दों के चयन के लिए छमा करें पर क्रोध को व्यक्त करने के लिए इन्हें लिखना पड़ा)

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